कुल्लू
कुल्लू का नाम जब मस्तिष्क पटल पे आता है, तो एक ऐसे खूबसूरत,प्राक्रतिक परिदृष्यौं से परिपूर्ण स्थली की कल्पना की जाती है जो अपने सौन्दर्य,लावण्य एवम अनुरूपता के कारण मशहूर है और आज इस घाटी की प्राक्रतिक छठा को निहारने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है I
प्राक्रतिक खूबसूरती की जो कल्पना मनुष्य करता है वोह सब यहाँ कण -कण में व्पाप्त एवम उपलब्ध है I अत्यंत घने जंगलों से परिपूर्ण अल्पाइन वृक्ष,ब्यास एवम पारबती नदी की घाटियाँ,सफेद बर्फ से ढकी हिमालय की पहाड़ियाँ,सेबों के बाग-बागीचे,स्थानीय मेले एवम त्यौहार और जोशीले तथा भोली-भाली इमानदार जनता यहाँ के मुख्या आकर्षण है I कुल्लू को ऐतिहासिक ग्रंथों में "कुलंथ पीठ' कहा गया है Iकुल्लू को तिबती भाषा में "नुति "कह कर बुलाते हैं Iपड़ोसी लाहुली लोग इसे "रामदी" या कुजा देश कह कर पुकारते हैं Iयहाँ के विद्वान स्वर्गीय लाल चंद प्रार्थी ने इसे "कुलूत देश "कहा है Iइस की अन्य घाटी जिस में मणिकर्ण और गडसा का इलाका आता है,उसे 'रुपी वैली 'कहते हैं Iयहाँ मुख्यता तीन तरह की कुलुई बोली हैं -एक बजोरा -मनिकर्ण से ले कर उझी घाटी तक की,दूसरी सैंज घाटी की एवम तीसरी सैराजी जो कि बंजार से कोरपण वैली तक बोली जाती है Iअन्नी निरमंड वालों कि थोड़ी भिन्न है Iइस के आलावा मलाणा में कणाशि बोली मशहूर है जो कि बिल्कुल ही विभिन्न एवम पृथक है I
प्राक्रतिक खूबसूरती की जो कल्पना मनुष्य करता है वोह सब यहाँ कण -कण में व्पाप्त एवम उपलब्ध है I अत्यंत घने जंगलों से परिपूर्ण अल्पाइन वृक्ष,ब्यास एवम पारबती नदी की घाटियाँ,सफेद बर्फ से ढकी हिमालय की पहाड़ियाँ,सेबों के बाग-बागीचे,स्थानीय मेले एवम त्यौहार और जोशीले तथा भोली-भाली इमानदार जनता यहाँ के मुख्या आकर्षण है I कुल्लू को ऐतिहासिक ग्रंथों में "कुलंथ पीठ' कहा गया है Iकुल्लू को तिबती भाषा में "नुति "कह कर बुलाते हैं Iपड़ोसी लाहुली लोग इसे "रामदी" या कुजा देश कह कर पुकारते हैं Iयहाँ के विद्वान स्वर्गीय लाल चंद प्रार्थी ने इसे "कुलूत देश "कहा है Iइस की अन्य घाटी जिस में मणिकर्ण और गडसा का इलाका आता है,उसे 'रुपी वैली 'कहते हैं Iयहाँ मुख्यता तीन तरह की कुलुई बोली हैं -एक बजोरा -मनिकर्ण से ले कर उझी घाटी तक की,दूसरी सैंज घाटी की एवम तीसरी सैराजी जो कि बंजार से कोरपण वैली तक बोली जाती है Iअन्नी निरमंड वालों कि थोड़ी भिन्न है Iइस के आलावा मलाणा में कणाशि बोली मशहूर है जो कि बिल्कुल ही विभिन्न एवम पृथक है I
देव भूमि
कहते हैं कुल्लू में १८ करोड़ देवी देवता वास करते हैं वेदों पुराणों की कल्पना और उन्हें लिखित रूप भी इसी घाटी में दिया गया Iमनु ऋषि ,वेद ब्यास,वशिष्ठ मुनि आदि की यह तपोस्थली रही है Iभगवान राम ने जब रावण को मारा था तो उस स्मृति में यहाँ प्राचीन काल से दशहरा का उत्सव मनाया जाता है जिस में ६०० से ज्यादा देवी देवता अपनी उपस्थिति देते हैं Iपांडवों ने अपने बनवास वर्ष एवम देह त्याग से पूर्व इसी घाटी में समय व्यतीत किया था Iघाटी के हर गाँव में विभिन देवी देवताओं के मन्दिर हैं, जिन की अप्पार श्रधा के साथ पूजा अर्चना की जाती है चाहे वोह शिव हो या विष्णु या माता के विभिन रूप ,हर देव देवी अवतार की इस घाटी में पूजा की जाती है अत इसी कारण इस घाटी को "देव भूमि "भी कहा जाता है Iदेवताओं का वास होने की वजह से लगभग हर वैली में तीज-त्यौहार मनाये जाते हैं ,जिन में डुंगरी ,पीपल जातर ,बिजली महादेव ,पूइड ,गुशैनी ,काऐस,शिरड,फोज़ल काप्पू,बंजार,जगतसुख ,सरसई ,कटराई,लग वैली के मेले बहुत उल्लास के साथ मनाये जाते हैं I
भौतिक स्थिती
कुल्लू की औसत समुन्द्र स्थल से ऊँचाई १३०० मीटर से ५०० मीटर के मध्यस्थ पड़ती है Iइस के उतर में ३९८० मीटर ऊँचा रोहतांग पास है जो की लाहौल घाटी के लिए रास्ता है मुख्या घाटी ब्यास नदी के दोनों और बसी है जिस में कई नाले जैसे कि सोलंग,मनाली,जगतसुख,छ
कुल्लू की कुछ मशहूर चीज़ें कुल्लू के उन के बने शाल एवम यहाँ के नदियों की रेनबो ट्राउट मछली अत्यंत मशहूर है Iकुलुई टोपी और मफलर का अपना आकर्षण है इसे बतोर इज्जत ह्फ्जाई के लिए मेहमानों को उपहार दिया जाता है Iकुल्लू के फल ,विशेषकर सेब अत्यंत मशहूर है Iयहाँ पल्लम ,खुरमानी ,चरी,बादाम की काफी पैदावार होती है Iयहाँ के लाल चावल ,लिंगडी की सब्जी,सीडू और घी की बाड़ी भी बहुत मशहूर हैं I | |
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